विवेक मिश्र की खास खबर-
जनपद में लाल लहू के कारोबार में कई पैथोलॉजी संचालक लिप्त हैं वास्तव में यह खून का काला खेल इन पैथोलॉजी और कुछ झोलाछाप निजी चिकित्सालयों में बेफिक्र होकर खेला जाता है यहां रिक्शे वालों को व स्मैकियों,नशेबाजों को बहला फुसला कर महज पांच सौ से सात सौ रुपये देकर कई कई यूनिट तक खून निकाल लिया जाता है और फिर उसे निजी चिकित्सालयों को पच्चीस सौ से तीन हजार रुपए में माफियाओं द्वारा बेच दिया जाता है।जिसे नर्सिंग होम संचालक मनमानी रेट से लगभग आठ से दस हजार चार्ज करके मरीजों के तीमारदारों पर मौत का डर दिखाकर थोप देते हैं। चूंकि जनपद के अधिकतर निजी चिकित्सालय झोलाछाप हैं तो वह लगभग हर दूसरे मरीज में खून की कमी दिखाकर कमाने का प्रयास करते हैं इसीलिए इसकी जनपद में खपत भारी मात्रा में है और उसकी पर्याप्त पूर्ति भी नहीं हो पाती इसीलिए इस खेल को हमेशा से बल मिलता रहा है।एक निजी ब्लड बैंक के संचालक की माने तो इतना खून हम लोगों के यहां उपलब्ध नहीं रहता जितनी जिले में जरूरत पड़ती है। तो इसका यह मतलब भी नहीं है कि खून गैरकानूनी तरीके से लोगों के शरीर से निकाला जाये, वह कानपुर व अन्य महानगरों से भी आवश्यकता पड़ने पर मंगाया जा सकता है मगर जिले में पैथोलॉजी के माध्यम से खेल करके मरीजों को बेवकूफ बनाया जाता है इसमें निजी चिकित्सालय के संचालक के इशारे से मरीज कि जाँच के समय हीमोग्लोबिन की मात्रा कम करके दिखा दी जाती है जिससे मरीज के तीमारदारों को डराया जा सके और तत्काल खून की आवश्यकता पडने की बात कही जा सके, बस यहीं से खून के माफियाओं का गैंग सक्रिय हो जाता है वह मरीज के सम्बन्धित ब्लड ग्रुप का एक यूनिट खून देने के आठ से दस हजार रुपये ले लेता है। इसमें निजी अस्पतालों की ही अहम भूमिका होती है असल मे उसे यह ब्लड की यूनिट खून के माफियाओं से महज ढाई से तीन हजार में ही मिलती है।इसीलिए यह मरीज की रिपोर्ट में खून की मात्रा कम दिखवाकर खून चढाने की बात करते हैं और डर दिखाकर सफल भी हो जाते हैं। पूर्व में आबूनगर में स्थित रही एक पैथोलॉजी का संचालक ही इस खून के काले कारोबार का इस समय सरगना है अब यह पैथोलॉजी ताम्बेश्वर चौराहे के समीप बताई जा रही है। वहीं एक नउआबाग चौराहे के समीप स्थित नर्सिंग होम संचालक सख्ती की वजह से इस समय वीआईपी रोड स्थित अपने आवास में गरीबों और मजलूमो का खून निकालने का काम करता है।मगर स्वास्थ्य के जिम्मेदारों को आज तक ये काला कारोबार नजर नहीं आया।आज तक इस काले कारोबार में मजबूत सख्ती न हो पाने की वजह से यह अब भी जिले के कई स्थानों पर पूर्व की भांति ही चल रहा है।
जनपद में लाल लहू के कारोबार में कई पैथोलॉजी संचालक लिप्त हैं वास्तव में यह खून का काला खेल इन पैथोलॉजी और कुछ झोलाछाप निजी चिकित्सालयों में बेफिक्र होकर खेला जाता है यहां रिक्शे वालों को व स्मैकियों,नशेबाजों को बहला फुसला कर महज पांच सौ से सात सौ रुपये देकर कई कई यूनिट तक खून निकाल लिया जाता है और फिर उसे निजी चिकित्सालयों को पच्चीस सौ से तीन हजार रुपए में माफियाओं द्वारा बेच दिया जाता है।जिसे नर्सिंग होम संचालक मनमानी रेट से लगभग आठ से दस हजार चार्ज करके मरीजों के तीमारदारों पर मौत का डर दिखाकर थोप देते हैं। चूंकि जनपद के अधिकतर निजी चिकित्सालय झोलाछाप हैं तो वह लगभग हर दूसरे मरीज में खून की कमी दिखाकर कमाने का प्रयास करते हैं इसीलिए इसकी जनपद में खपत भारी मात्रा में है और उसकी पर्याप्त पूर्ति भी नहीं हो पाती इसीलिए इस खेल को हमेशा से बल मिलता रहा है।एक निजी ब्लड बैंक के संचालक की माने तो इतना खून हम लोगों के यहां उपलब्ध नहीं रहता जितनी जिले में जरूरत पड़ती है। तो इसका यह मतलब भी नहीं है कि खून गैरकानूनी तरीके से लोगों के शरीर से निकाला जाये, वह कानपुर व अन्य महानगरों से भी आवश्यकता पड़ने पर मंगाया जा सकता है मगर जिले में पैथोलॉजी के माध्यम से खेल करके मरीजों को बेवकूफ बनाया जाता है इसमें निजी चिकित्सालय के संचालक के इशारे से मरीज कि जाँच के समय हीमोग्लोबिन की मात्रा कम करके दिखा दी जाती है जिससे मरीज के तीमारदारों को डराया जा सके और तत्काल खून की आवश्यकता पडने की बात कही जा सके, बस यहीं से खून के माफियाओं का गैंग सक्रिय हो जाता है वह मरीज के सम्बन्धित ब्लड ग्रुप का एक यूनिट खून देने के आठ से दस हजार रुपये ले लेता है। इसमें निजी अस्पतालों की ही अहम भूमिका होती है असल मे उसे यह ब्लड की यूनिट खून के माफियाओं से महज ढाई से तीन हजार में ही मिलती है।इसीलिए यह मरीज की रिपोर्ट में खून की मात्रा कम दिखवाकर खून चढाने की बात करते हैं और डर दिखाकर सफल भी हो जाते हैं। पूर्व में आबूनगर में स्थित रही एक पैथोलॉजी का संचालक ही इस खून के काले कारोबार का इस समय सरगना है अब यह पैथोलॉजी ताम्बेश्वर चौराहे के समीप बताई जा रही है। वहीं एक नउआबाग चौराहे के समीप स्थित नर्सिंग होम संचालक सख्ती की वजह से इस समय वीआईपी रोड स्थित अपने आवास में गरीबों और मजलूमो का खून निकालने का काम करता है।मगर स्वास्थ्य के जिम्मेदारों को आज तक ये काला कारोबार नजर नहीं आया।आज तक इस काले कारोबार में मजबूत सख्ती न हो पाने की वजह से यह अब भी जिले के कई स्थानों पर पूर्व की भांति ही चल रहा है।