फ़तेहपुर खास खबर -
( विवेक मिश्र )
आपने बहुत सारी फिल्मों,किस्सों, कहानियों में वैम्पायर का नाम तो सुना ही होगा,जो इंसान का खून पीकर ही जीवित रहते हैं। इन्हें हिंदी में पिशाच भी बोलते हैं यह इंसानी खून को सूंघकर पहचान जाते हैं और उन्हें ढूंढकर अपना शिकार बना लेते हैं। खैर ये तो काल्पनिक बाते हैं लेकिन असल जिंदगी में तो इंसान इससे भी भयावह होता जा रहा है।इन्हीं इंसानों में कुछ स्वास्थ्य ब्यवस्था (पैथोलॉजी या नर्सिंग होम) का चोला ओढ़कर विशुद्ध पिशाच बनकर इंसानी जिंदगी से खेल रहे हैं। मेरी निगाह में तो ये नरभक्षी ही हैं। असल मे फ़तेहपुर जनपद में असहाय इंसानों से खून निकालने का व्यापार चरम सीमा पर चल रहा है यह कई पैथॉलॉजियों और झोलाछाप अस्पताल के संचालकों की प्रमुख काली कमाई का अहम हिस्सा है,यह रुपये कमाने की चक्कर में इंसान से शैतान बन गए हैं इनमें से एक माफ़िया नउआ बाग से डाक बंगले के बीच मे फर्जी नर्सिंग होम चलाता है साथ ही उस नर्सिंग होम में और वीआईपी रोड स्थित अपने आवास पर रिक्शे वालों का खून निकालकर बेचता है और दूसरा आबूनगर से भगोड़ा पैथालॉजी संचालक है जो खून के व्यापार में पहले से ही कुख्यात है वहीं बताया जा रहा है कि इसने फ़तेहपुर की सीमाओं से सटे जिलों में भी अपना नेटवर्क फैला रक्खा है और बांदा में पुलिस के हत्थे भी चढ़ चुका है लेकिन अपने धनबल पर इसने खाकी को भी गुमराह कर दिया है।तीसरा माफ़िया लोधीगंज स्थित एक पैथोलॉजी के संचालक का रिश्तेदार है जो लोगों के खून को निकालकर पेशे पर कलंक लगा रहा है।वहीं एक पूर्व जनप्रतिनिधि का नर्सिंग होम भी अवैध कार्यों के लिए बदनाम है वहां भी खून के अवैध व्यापार का काम होता है वहीं चर्चा है कि एक खून निकालने का वीडियो भी उस अस्पताल का वायरल हुआ जिस पर सेटलमेंट का प्रयास भी हुआ था। वैसे इस कुकृत्य में जिले के लगभग एक दर्जन माफ़िया शामिल हैं लेकिन अगर मुख्य दो तीन पर कार्यवाही हो गई तो काफी हद तक लहू माफियाओं की कमर टूटेगी और ब्यवस्था में बड़ा सुधार होगा।
( विवेक मिश्र )
आपने बहुत सारी फिल्मों,किस्सों, कहानियों में वैम्पायर का नाम तो सुना ही होगा,जो इंसान का खून पीकर ही जीवित रहते हैं। इन्हें हिंदी में पिशाच भी बोलते हैं यह इंसानी खून को सूंघकर पहचान जाते हैं और उन्हें ढूंढकर अपना शिकार बना लेते हैं। खैर ये तो काल्पनिक बाते हैं लेकिन असल जिंदगी में तो इंसान इससे भी भयावह होता जा रहा है।इन्हीं इंसानों में कुछ स्वास्थ्य ब्यवस्था (पैथोलॉजी या नर्सिंग होम) का चोला ओढ़कर विशुद्ध पिशाच बनकर इंसानी जिंदगी से खेल रहे हैं। मेरी निगाह में तो ये नरभक्षी ही हैं। असल मे फ़तेहपुर जनपद में असहाय इंसानों से खून निकालने का व्यापार चरम सीमा पर चल रहा है यह कई पैथॉलॉजियों और झोलाछाप अस्पताल के संचालकों की प्रमुख काली कमाई का अहम हिस्सा है,यह रुपये कमाने की चक्कर में इंसान से शैतान बन गए हैं इनमें से एक माफ़िया नउआ बाग से डाक बंगले के बीच मे फर्जी नर्सिंग होम चलाता है साथ ही उस नर्सिंग होम में और वीआईपी रोड स्थित अपने आवास पर रिक्शे वालों का खून निकालकर बेचता है और दूसरा आबूनगर से भगोड़ा पैथालॉजी संचालक है जो खून के व्यापार में पहले से ही कुख्यात है वहीं बताया जा रहा है कि इसने फ़तेहपुर की सीमाओं से सटे जिलों में भी अपना नेटवर्क फैला रक्खा है और बांदा में पुलिस के हत्थे भी चढ़ चुका है लेकिन अपने धनबल पर इसने खाकी को भी गुमराह कर दिया है।तीसरा माफ़िया लोधीगंज स्थित एक पैथोलॉजी के संचालक का रिश्तेदार है जो लोगों के खून को निकालकर पेशे पर कलंक लगा रहा है।वहीं एक पूर्व जनप्रतिनिधि का नर्सिंग होम भी अवैध कार्यों के लिए बदनाम है वहां भी खून के अवैध व्यापार का काम होता है वहीं चर्चा है कि एक खून निकालने का वीडियो भी उस अस्पताल का वायरल हुआ जिस पर सेटलमेंट का प्रयास भी हुआ था। वैसे इस कुकृत्य में जिले के लगभग एक दर्जन माफ़िया शामिल हैं लेकिन अगर मुख्य दो तीन पर कार्यवाही हो गई तो काफी हद तक लहू माफियाओं की कमर टूटेगी और ब्यवस्था में बड़ा सुधार होगा।